Saturday, March 28, 2009

लोकतन्त्र -मदन कश्यप की कुछ त्रिपदियाँ

एक लोकतन्त्र में तुम्हे हक है किसी को भी चुन लेना का मगर कुछ भी बदलने का नहीं
तुम्हे पता भी नहीं होता तुम्हारे द्वारा चुने जाने के पहले कोई उसे चुन चुका होता है
तुम उसको चुनते हो अथवा वह चुनता है तुमको कि तुम चुनो उसे ताकि वह राज करे।
तुम सरकार बदल सकते हो मगर उसे चलाने का अधिकार वे तुम्हे कभी नहीं देने वाले हैं।
बिके हुए लोगो की कोई कौम नहीं होती ऐसे में उन्हे चुनना कौम से विश्वासघात करना है।
जब कभी सत्ताधारियों का गिरोह बन जाता है तब राजतन्त्र से भी बदतर हो जाता है लोकतन्त्र ।

एक तिनका

मैं घमंडों में भरा ऐंठा हुआ,
एक दिन जब था मुंडेरे पर खड़ा।
आ अचानक दूर से उड़ता हुआ,
एक तिनका आँख में मेरी पड़ा।
मैं झिझक उठा, हुआ बेचैन-सा,
लाल होकर आँख भी दुखने लगी।
मूँठ देने लोग कपड़े की लगे,
ऐंठ बेचारी दबे पॉंवों भागने लगी।
जब किसी ढब से निकल तिनका गया,
तब 'समझ' ने यों मुझे ताने दिए।
ऐंठता तू किसलिए इतना रहा,
एक तिनका है बहुत तेरे लिए।

खुशबू को फैलने का बहुत शौक है मगर मुमकिन नहीं हवाओं से रिश्ता बनाए बगैर....

शैल कुमारी की कविता
अकेले और अंधेरे की यात्रा
छोटे- छोटे पौधे और घने वृक्षों को छोड़ ताड़ का वृक्ष अकेला ऊँचा उठता है।
घनी रात के साये में रात-रानी का फूलरह- रह कर महकता है
जीवन कुछ नही अकेले और अंधेरे की यात्रा है।

Tuesday, July 15, 2008

समाज का एक्सरे करती धूमिल की एक कविता

मैंने एक-एक कोपरख लिया है
मैंने हरेक को आवाज़ दी हैहरेक का दरवाजा खटखटाया है
मगर बेकार…मैंने जिसकी पूँछउठायी है उसको मादापाया है।
वे सब के सब तिजोरियों केदुभाषिये हैं।
वे वकील हैं। वैज्ञानिक हैं।अध्यापक हैं। नेता हैं।
दार्शनिक हैं । लेखक हैं। कवि हैं। कलाकार हैं।
यानी कि-कानून की भाषा बोलता हुआ
अपराधियों का एक संयुक्त परिवार है।

Friday, June 6, 2008